नर नहीं हम नारी हैं बेहद दक्ष औ प्यारी हैं संकटमोचन बनकरके दुर्गा रूप भी धारी हैं
सारे काम करें हम नारी हैं शक्ति पुंज नहीं बेचारी करें सेवा हर पल बेगारी आठों याम घर बाहर संवारी
भोर भये से दिनचर्या चलती झाडू फटका साथ में करती स्नान,ध्यान कर रसोई सम्भाले स्वाद में नेह माधुरी मिला लें
कपड़े धोये करती प्रैस सब्जी भाजी लाती फ्रेश मुन्ने को संभाले आँचल में ज्यों चन्दा छिप जाये बादल में
आफिस जाती नोट कमाती लैपटॉप सम्भालें पाठ पढाती विविध व्यंजनों से मेज सजाती प्रेम आग्रह से सबको खिलातीं
पति की सच्ची साथी हैं दिया संग जैसे बाती है एक दूजे की खुशियाँ हैं जादू की जैसे पुडिया हैं
जीवन एक संघर्ष है जिसे ये जीती सहर्ष हैं नर के जीवन का उत्कर्ष हैं ज्यों अँधियारी में प्रत्यूष हैं
इनमें तन्मयता साहस,शक्ति भरें ममता,प्रेम,धैर्य,प्रखरता संग लिए आनन्द,उंमग प्रमुदित मन मोद भरें ज्यों हों रति भार्या से प्रणय गीत भरें
नारी गुणों की अनुपम निधि है विधाता की लिखी सुविधि है चरणों में लक्ष्मी की सिद्धि है हर क्षेत्र में मिली प्रसिद्धि है
वास हो घर में देवों का ऐसा हम गुमान करें आओ, हम सब मिलकर नारी का सम्मान करें ||
✍ सीमा गर्ग मंजरी मेरी स्वरचित रचना